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लेखनी कहानी -01-Mar-2023 छतरी

आजकल एक छतरी बहुत चर्चा में है । मैं तो कहता हूं कि वह छतरी कितनी भाग्यवान है जो चर्चा में बनी हुई है । लोग तो चर्चा में बने रहने के लिए अपने गाल पर "थप्पड" खा लेते हैं, स्याही फिंकवा लेते हैं , मिर्ची पाउडर फिंकवा लेते हैं । और तो और बहुत सी औरतें तो 25 - 30 साल पुराने किसी मामले को "मी ठू" अभियान में प्रकाशित करके सुर्खियां बटोर लेती हैं । प्रसिद्धि पाने के लिए लोग क्या क्या नहीं करते हैं । स्वयं ही विवाद पैदा करके फिल्म को विवादित करवा लेते हैं और फिर इसी प्रसिद्धि के बल पर फिल्म को सुपर डुपर हिट करा लेते हैं । नाम बड़ी चीज है चाहे वह बदनामी से ही क्यों न हो । सबकी चाहत होती है कि उसका नाम अखबारों में छपे । टेलीविजन पर रात दिन चले । छतरी कोई अलग थोड़ी ना है । 

तो छतरी भी रातों-रात हिट हो गई और ऐसी हिट हुई कि स्वयं प्रधानमंत्री जी ने उसकी गाथा पूरे मनोयोग से सार्वजनिक रूप से सुनाई । हुआ यूं कि अभी छत्तीसगढ राज्य में एक पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था । जाहिर है कि जब राष्ट्रीय अधिवेशन होगा तो पार्टी के अध्यक्ष वहां पर होंगे और अध्यक्ष होने के कारण आकर्षण का केन्द्र भी वही होंगे । 

पर यह क्या ? अध्यक्ष महोदय को न तो पार्टी के पदाधिकारी घास डाल रहे थे और ना ही पत्रकार । मीडिया में अध्यक्ष की कोई खबर नहीं । सारा फोकस राजमाता , युवराज और राजकुमारी पर था । सुनते हैं कि राजकुमारी के स्वागत के लिए 6000 किलो गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां करीब 2 किलोमीटर तक बिछाई गई थीं जिससे राजकुमारी जी गदगद हो जायें । राजकुमारी जी की कृपा कौन नहीं चाहता है ? छत्तीसगढ के मुख्य मंत्री भी उनकी कृपा प्राप्त करना चाहते होंगे तभी तो उनका ऐसा भव्य स्वागत किया गया था । अध्यक्ष जी के स्वागत के लिए फूलों का एक गुलदस्ता भी नहीं ? बहुत नाइंसाफी है । बेचारे अध्यक्ष जी, हाथ मलते ही रह गए । कोई उन्हें टका सेर पूछने वाला नहीं था । 

बहुत हल्ला मचा था जब अध्यक्ष जी को अध्यक्ष "निर्वाचित" किया गया था । तब कहा गया था कि पार्टी ने एक "दलित" को अध्यक्ष बनाकर दलितों को कितना सम्मान दिया है । मगर जब इस अधिवेशन में एक दलित अध्यक्ष का सरेआम अपमान हो रहा था तब सारा मीडिया खामोश था । या यों कहें कि उनका अपमान करने में मीडिया भी शामिल था । इस पार्टी में दलितों की यही हैसियत है, शायद यह संदेश दे दिया गया था । 

अब आप कहेंगे कि इन सबमें छतरी तो आई ही नहीं ? फिर छतरी का गुणगान क्यों ? पर थोड़ा सब्र रखिये जनाब , छतरी का भी एक सम्मान जनक स्थान है, वह ऐसे ही थोड़े ना आ जायेगी । तो जब अधिवेशन का समापन हो रहा था तो सूर्य भगवान ने अपनी दृष्टि थोड़ी टेढी कर ली । भगवानों का अपमान करने में तो इस दल को महारथ हासिल है इसलिए सभी देवता और भगवान गाहे बगाहे इस दल से  नाराज रहते हैं  । तो सूर्य भगवान ने सोचा कि आज इन्हें मजा चखाना चाहिए, इसलिए वे थोड़ा नीचे उतर आये । सूर्य भगवान के नीचे उतरते ही पृथ्वी तपने लगी । एक तो गर्म धरती और उस पर कड़ी धूप । सिर से पसीना टपक कर जमीन पर गिरने लगा । वैसे तो ये सब लोग AC के अभ्यस्त हो गये हैं और इन्होंने कभी पसीना देखा नहीं है बस उसके बारे में सुना है । मगर आज उससे साक्षात्कार हो गया तो इनको नानी याद आ गई । 

पर पार्टी में कुछ सेवा भावी व्यक्ति भी होते हैं । पार्टी अध्यक्ष सबसे बुजुर्ग व्यक्ति हैं । उनकी उम्र 81 साल है और फिर वे दलित समाज से आते हैं । तो एक आदमी दौड़ा दौड़ा गया और कहीं से ढूंढकर एक छतरी ले आया । अध्यक्ष जी की जान में जान आ गई । कोई तो है जो अभी भी उनका ध्यान रखता है, उनकी इज्ज़त करता है और अध्यक्ष पद की गरिमा समझता है । उन्होंने मन ही मन उस व्यक्ति को हजारों धन्यवाद ज्ञापित कर दिये । 

वह व्यक्ति बिजली की सी फुर्ती से चला आ रहा था । अध्यक्ष महोदय खुद को छतरी के नीचे होने के लिए तैयार कर ही रहे थे कि वह व्यक्ति उनके पास में ही रुक गया और उसने वहीं छतरी खोल दी । अध्यक्ष जी अभी सोच ही रहे थे कि यह व्यक्ति वहां क्यों रुक गया ? इतनी सी भी अक्ल नहीं है क्या उसमें ? इतने में अध्यक्ष जी ने देखा कि वह व्यक्ति उस छतरी को खोलकर राजमाता के पीछे खड़ा हो गया और राजमाता को तपती धूप से संरक्षण प्रदान कर दिया । राजमाता पर छाया करके छतरी भी धन्य हो गई और उसने अपना नाम हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज करा लिया । छतरी लाने वाला व्यक्ति एक ही पल में सबसे अधिक वफादारों की श्रेणी में आ गया और उसने ऐसा करके कार्यकारिणी का सदस्य बनने की योग्यता भी प्राप्त कर ली थी । बेचारे अध्यक्ष जी, देखते ही रह गये । उनके चेहरे के भाव बहुत शानदार थे । पर ये बात अध्यक्ष जी भी जानते हैं । उन्हें अपनी हैसियत पता है । 

उन्होंने इस दल के एक प्रधानमंत्री को देखा है जो अपनी मर्जी से अपना एक प्रेस सलाहकार भी नहीं रख सकता था औरों की तो बात ही क्या है ? यहां तो सब कुछ "खानदानी" है । "वे" कुछ नहीं होकर भी सब कुछ हैं और "अध्यक्ष जी" अध्यक्ष होकर भी कुछ नहीं है । तो छतरी इतनी मूर्ख थोड़ी ना है जो एक "अधिकार विहीन" सिर की शोभा बनेगी । वह तो "ताकत" की ही शोभा बनती आई है आज तक इसलिए उस दिन भी उसने वही सिर चुना था जो सबसे ताकतवर था । इसी कारण वह छतरी सब पर छा गई । अब उस छतरी को और कोई हाथ भी नहीं लगा सकता है । इसे कहते हैं छतरी की हैसियत । अध्यक्ष से भी बड़ी हैसियत है छतरी की । ऐसी छतरी तो नित्य पूजनीय है । हे छतरी माता, तुझे शत शत नमन । 

श्री हरि 
1.3.23 


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3 Comments

Renu

01-Mar-2023 05:18 PM

👍👍🌺

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Punam verma

01-Mar-2023 08:44 AM

Nice

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Abhinav ji

01-Mar-2023 08:08 AM

Very nice

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